Menu
blogid : 16925 postid : 668889

अन्ना जी, ये तो ठीक नहीं है

Uvaach
Uvaach
  • 4 Posts
  • 1 Comment

अन्ना जी पुनः जन लोकपाल की माँग को लेकर आमरण अनशन पर बैठ गए हैं।एक ऐसा जन लोकपाल जिसके लिए अन्ना पूर्व में भी अनशन कर चुके हैं जिसके कारण संपूर्ण भारत वर्ष में एक बड़ा जन आंदोलन, इतना तीव्र कि द्वितीय आज़ादी कि लड़ाई कहा जाने लगा, खड़ा हुआ और उसी आंदोलन के गर्भ से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ।

आम आदमी पार्टी का जन्म देश में व्याप्त भृष्ट राजनैतिक व्यवस्था का समूल नाश के उद्देश्य के साथ हुआ। और इसमें अन्ना जी का आशीर्वाद और पितृत्व भाव भी था। अन्ना जी ने कहा था कि अरविन्द और मेरे रास्ते अलग अलग, परन्तु लक्ष्य एक ही है और वह है राजनैतिक व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन।

परन्तु ज्यादा समय नहीं हुआ और अन्ना जी के विचार आम आदमी पार्टी के बारे में बदलने लगे। अन्ना जी प्रकांतर रूप से आम आदमी पार्टी को समाप्त करने का दबाब बनाने लगे। ‘राजनीति एक कीचड़ ‘ है और अरविन्द ने राजनीति में जाने का गलत निर्णय लिया है, ऐसा कहने लगे।
अन्ना जी यहीं नहीं रुके, उन्होंने अरविन्द पर आंदोलन के दौरान एकत्रित धन राशि का गलत उपयोग करने और हिसाब न देने का भी आरोप लगाया। अरविन्द के बार बार हिसाब देने के बावज़ूद भी वह गाहे बगाहे इसी राग को अलापते रहते थे।

अन्ना ने आम आदमी पार्टी पर उनके नाम का गलत प्रयोग करने का भी आरोप लगाया।
बीच बीच में वो अरविन्द के बारे में सही राय भी देते थे। अरविन्द मेरा जैसा ही है, उसने देश के लिए बहुत त्याग किया।

जब उन्होंने आम आदमी पार्टी दिल्ली विधान सभ चुनावों में शानदार प्रदर्शन पर बधाई दी और अरविन्द केजरीवाल द्वारा सरकार न बनाने के निर्णय की सराहना की, तो लगा जैसे अब अन्ना की आम आदमी पार्टी के बारे में शंकाओं पर विराम लगने वाला है। शायद अन्ना के इसी बयान से उत्साहित होकर आम आदमी पार्टी ने अन्ना के अनशन के दौरान उनसे मिलने के बारे में सोचा।

परन्तु यह क्या ? जन आंदोलन के मंच से आम आदमी पार्टी के विरुद्ध प्रचार किया जाने लगा। वी के सिंह ने स्पष्ट तौर पर आम आदमी पार्टी को निहित स्वार्थों तथा महत्वकांक्षाओं के कारण अन्ना को धोख़ा देने का आरोप लगाया। और जब अन्ना के साथ ही अनशन पर बैठे गोपाल राय ने इसका विरोध किया तो अन्ना ने समस्त शिष्टाचार की सीमाओं को लांघते हुए उन्हें वहाँ से चले जाने को बोल दिया। अन्ना जी का ये व्यवहार निश्चित रूप से यह एक अशोभनीय प्रदर्शन था। दुःख होता है एक ऐसे व्यक्ति ऐसा व्यवहार देखकर, जिसका अतीत उनकी समाज के प्रति किये कार्यों से प्रकशित है।
भारतीय राजनीति में सिर्फ और सिर्फ आम आदमी पार्टी ही एक मात्र ऐसा दल है जो कि अन्ना के द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल का पूरी तरह समर्थन करता है, और अन्ना हैं कि उसे लगातार नीचा दिखाते रहते हैं। अन्य दल जो कि अन्ना द्वारा प्रस्तावित जन लोकपाल न लाकर किसी भी कीमत दन्त और अधिकार विहीन लोकपाल की लाने की कोशिश में लगे हैं, उन्हें ही मानाने के प्रयास में लगे हैं।

आखिर अन्ना चाहते क्या हैं ? उनके के लिए क्या महत्वपूर्ण है : देश के लिए जन लोकपाल या जन लोकपाल लाये जाने के लिए श्रेय ?

अन्ना को यह स्पष्ट करना ही होगा। ऐसे तो नहीं चलेगा। वो पिता समान – पिता समान कहते रहते हैं और आप हैं कि उन्हें बिना किसी वाज़िब करण के लताड़ते रहते हैं।
कभी हाँ, कभी ना।
अन्ना जी ना, ना, ना । ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh